भूमिका: सावित्री की भक्ति और वट वृक्ष की महिमा
भारतीय संस्कृति में वट सावित्री व्रत विवाहित महिलाओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं। इस व्रत की प्रमुख कथा सावित्री और सत्यवान की है, जिसमें सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और भक्ति के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस प्राप्त किए थे। यह कथा न केवल प्रेम और निष्ठा का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि एक स्त्री की भक्ति और संकल्प से मृत्यु जैसे अटल सत्य को भी बदला जा सकता है।
वट सावित्री व्रत कथा: सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया, जो एक वनवासी और अल्पायु था। नारद मुनि ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की मृत्यु एक वर्ष में हो जाएगी, लेकिन सावित्री ने अपने प्रेम और निष्ठा के कारण उससे विवाह किया। विवाह के बाद, जब सत्यवान की मृत्यु का समय आया, तो यमराज उसके प्राण लेने आए। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपनी बुद्धिमत्ता से उन्हें संतुष्ट किया। यमराज ने सावित्री को तीन वरदान देने का वचन दिया। सावित्री ने अपने ससुर के नेत्रों की ज्योति, उनका खोया हुआ राज्य और अपने लिए सौ पुत्रों का वरदान मांगा। यमराज ने वरदान दे दिए, लेकिन जब सावित्री ने सौ पुत्रों की बात कही, तो यमराज को समझ आया कि बिना सत्यवान के यह संभव नहीं है। उन्होंने सावित्री की दृढ़ता को सराहा और सत्यवान को जीवनदान दे दिया। Navbharat Times+5आज तक+5Live Hindustan+5Navbharat Times+3Live Hindustan+3Live Hindustan+3mint
व्रत की विधि और पूजा का महत्व
वट सावित्री व्रत में महिलाएं प्रातःकाल स्नान करके पारंपरिक परिधान धारण करती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वट वृक्ष को त्रिदेवों—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत (धागा) लपेटती हैं, सिंदूर, फूल, फल और मिठाई अर्पित करती हैं, और सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करती हैं। यह व्रत निर्जला उपवास के साथ रखा जाता है, जिसमें महिलाएं दिनभर जल ग्रहण नहीं करतीं और शाम को पूजा के बाद व्रत खोलती हैं।
व्रत का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
वट सावित्री व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह स्त्री के समर्पण, प्रेम और निष्ठा का भी प्रतीक है। यह व्रत विवाहित महिलाओं को अपने पति के प्रति अपने कर्तव्यों और प्रेम को पुनः स्मरण कराता है। साथ ही, यह व्रत सामाजिक रूप से महिलाओं को एकजुट करता है, जब वे सामूहिक रूप से व्रत करती हैं और पूजा में भाग लेती हैं।Navbharat Times
निष्कर्ष: अखंड सौभाग्य की प्राप्ति का मार्ग
वट सावित्री व्रत एक ऐसा पर्व है जो महिलाओं को अपने पति के प्रति प्रेम, निष्ठा और समर्पण को दर्शाने का अवसर प्रदान करता है। सावित्री की कथा हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और भक्ति से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं न केवल अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, बल्कि अपने वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की भी प्रार्थना करती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 26 मई 2025 को मनाया गया।
वट सावित्री व्रत का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इस व्रत का मुख्य उद्देश्य विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करना है।
व्रत के दिन कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?
व्रत के दिन महिलाओं को झूठ बोलने, क्रोध करने, बालों में तेल लगाने और नाखून काटने जैसे कार्यों से बचना चाहिए।
क्या वट सावित्री व्रत केवल विवाहित महिलाएं ही कर सकती हैं?
हां, यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है।Navbharat Times
व्रत कथा का पाठ क्यों महत्वपूर्ण है?
व्रत कथा का पाठ व्रत की पूर्णता के लिए आवश्यक माना जाता है। यह कथा सावित्री के दृढ़ संकल्प और भक्ति को दर्शाती है, जिससे व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।