भूमिका
भारतीय संस्कृति में वट सावित्री व्रत का विशेष स्थान है। यह व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत की मूल कथा महाभारत के वन पर्व में वर्णित है, जिसमें सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प, भक्ति और बुद्धिमत्ता से यमराज से अपने पति सत्यवान का जीवन पुनः प्राप्त किया।
इस व्रत के दिन महिलाएं वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं, जो त्रिदेवों—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—का प्रतीक माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है और इसे अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
मुख्य कथा: सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा
सावित्री का जन्म और विवाह
राजा अश्वपति और रानी मालविका की पुत्री सावित्री अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और धर्मपरायण थीं। उन्होंने अपने पति के रूप में सत्यवान का चयन किया, जो एक वनवासी राजकुमार थे। ऋषि नारद ने भविष्यवाणी की थी कि सत्यवान एक वर्ष में मृत्यु को प्राप्त होंगे, लेकिन सावित्री ने अपने निर्णय से पीछे हटने से इनकार कर दिया।
यमराज से संवाद
एक दिन, जब सत्यवान लकड़ी काटने जंगल गए, तो उन्हें चक्कर आया और वे सावित्री की गोद में गिर पड़े। यमराज उनके प्राण लेने आए, लेकिन सावित्री ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। यमराज ने उन्हें कई बार लौटने को कहा, लेकिन सावित्री ने धर्म, भक्ति और नारी धर्म पर अपने तर्कों से यमराज को प्रभावित किया।
यमराज द्वारा वरदान
यमराज ने सावित्री को चार वरदान दिए:
- उनके ससुर Dyumatsena की दृष्टि और राज्य की पुनः प्राप्ति।
- उनके पिता अश्वपति को सौ पुत्रों का वरदान।
- स्वयं को सौ पुत्रों का वरदान।
- सत्यवान का जीवन।
सावित्री की भक्ति और बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया।
व्रत की विधि और महत्व
व्रत की तिथि
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत 26 मई को मनाया जाएगा।
व्रत की विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- वट वृक्ष के नीचे पूजा की सामग्री लेकर जाएं।
- वट वृक्ष की पूजा करें और उसके चारों ओर सूत का धागा लपेटें।
- सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें।
- पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करें।
व्रत का महत्व
यह व्रत नारी शक्ति, भक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सावित्री की कथा महिलाओं को यह सिखाती है कि प्रेम, भक्ति और बुद्धिमत्ता से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
वट सावित्री व्रत नारी शक्ति, भक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सावित्री की कथा महिलाओं को यह सिखाती है कि प्रेम, भक्ति और बुद्धिमत्ता से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। इस व्रत को श्रद्धा और विधिपूर्वक करने से पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
कॉल टू एक्शन: यदि आप इस व्रत को करने जा रही हैं, तो सावित्री की कथा का पाठ अवश्य करें और व्रत की विधियों का पालन करें। आपके अनुभव और विचार हमें कमेंट में बताएं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?
यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह 26 मई को मनाया जाएगा।
वट सावित्री व्रत का मुख्य उद्देश्य क्या है?
विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।Navbharat Times
व्रत के दिन क्या-क्या करना चाहिए?
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, वट वृक्ष की पूजा करें, सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें और निर्जला उपवास रखें।
व्रत के दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
व्रत के दिन झूठ न बोलें, क्रोध न करें और किसी का अपमान न करें। सात्विक आहार लें और पूजा विधि का पालन करें।
क्या व्रत कथा का पाठ करना आवश्यक है?
हां, व्रत कथा का पाठ करने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
वट वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है?
वट वृक्ष को त्रिदेवों का प्रतीक माना जाता है और सावित्री ने इसी वृक्ष के नीचे यमराज से अपने पति का जीवन वापस पाया था।
क्या व्रत के दिन कोई विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए?
सावित्री मंत्र और यमराज से संबंधित मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है।